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न्यायवान् (वत्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] भारतीय आर्यों के दर्शनों में से एक दर्शन या शास्त्र जिसमें किसी तथ्य या बात का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए तार्किक दृष्टि से उसके विवेचन के नियम और सिद्धांत निरूपित हैं। (उसके कर्ता गौतम ऋषि हैं।)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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